॥ॐ॥
मूलाधारे मूलविद्दया विद्युत्कोटि समप्रभासम्।
सूर्यकटि प्रतीकाशां चन्द्रकोटि द्रवां प्रिये।।
अर्थात् मूलाधार चक्र में विद्युत प्रकाश ही करोड़ों किरणों वाला, करोड़ों सूर्यो और चन्द्रमाओं के प्रकाश के समान, कमल की डण्डी के समान अविच्छिन्न तीन घेरे डाले हुए मूल विद्या रूपिणी कुण्डलिनी स्थित है। वह कुण्डलिनी परम प्रकाशमय है, अविच्छिन्न शक्तिधारा है और तेजोधारा है।
- ज्ञानार्णव तंत्रम्