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अपने दोषो की वास्तविक परिस्थिति की स्वीकृति के बगैर बदलाव संभव नहीं है।

अपने दोषो की वास्तविक परिस्थति का स्वीकार किये बीना कदापि अपनी वृति में सुधर संभव नहीं है।

खुद ही परेसान रहोंगे। खुद ही तड़पोगे। अपने निकट के परिवार जन कुछ कहे रहे है । मित्र कुछ कहे रहे है। उसे सुने ..... सब एक ही बात दोहरा रहे है। सब आपको एक ही बात समजा रहे है। वह लोग आपस ने एक दूसरे से मिले भी नहीं है। फिर एक ही बात कर रहे है। तो कही न कही आत्म चिंतन करने की आवसकयता है।

सब से पहले अपने आपको जुकना ही पड़ेगा। आपको आपके पद को , उम्र को, अनुभव को जुकाना ही पड़ेगा। उसे झुकाये बगैर आपकी रिसीविंग हो ही नहीं सकती। आप सही है, बात सही है। पर कुछ पल के लिए जुक जाने से वह आपका सही पन गलत नहीं होने वाला है। जो सत्य है वह सत्य ही है पर कुछ पल के लिए ही सही आप अपने दोस्तों की बात सुनो सभी परिवार जानो की बात सुनो उन सबकी बातो पे विचार करो।

और फिर अपने उस सत्य बात के साथ उन लोगो ने कही हुए बातो से तुलना करो। में नहीं कहता उनकी सारि की सारि बाते को मनो । जो भी अच्छा लगे उसे ग्रहण करे और थोडा बदलाव लाइए।

यकीन मानिये आपके द्वारा किया गया एक प्रयास आपके आपके मित्र के साथ परिवार जानो के साथ एक आत्मीयता भरा संबंध निर्मित करेगा।

आखिर अपने तो अपने होते है।

-उमेश तरसरीया