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मन कब नष्ट या शांत होता है ?


स्वामीजी : मन जब आत्मा में विलीन हो जाता है और अपना पृथक अस्तित्व खो देता है ,
तब वह सदा के लिए शांत हो जाता है ,इसे मनोनाश कहा है .
मन विचारों का प्रवाह है जिसका सञ्चालन विचारक अर्थात अहम करता है .
आत्मा साक्षी है ,जागरूकता मात्र है ,बोध मात्र है .
जब आप मन के साक्षी होते हैं ,तब विचारक का स्थान साक्षी आत्मा ले लेती है .
तब विचार स्वतः शांत होकर ,मन आत्मा में विलीन हो जाता है ,और अपना पृथक
अस्तित्व खो देता है .शेष रहता है आनंद ,सच्चिदानंद .