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आत्मा ही ईश्वर और आत्मा ही जीव

आत्मा ही ईश्वर और आत्मा ही जीव।' तीन शब्दोँ का उपयोग है: ईश्वर...ईश्वर से अर्थ है शुद्धतम चैतन्य। फिर आत्मा। आत्मा और ईश्वर मे क्या अंतर है? उतना ही अंतर है जितना सागर और बूंद मे है। ध्यान ये रखना है कि सागर बूंदोँ के जोड़ से भी कुछ अतिरिक्त है। मनुष्य शरीर मे जब वह परम चैतन्य निवास करता है तो उसे आत्मा कहते है। सूरज निकला आकाश मे और आंगन मे भी सूरज की किरणे भर गईँ। किरणोँ किरणोँ मे भी क्या कोई भेद है? फिर भी आंगन की किरणोँ की सीमा है...मकान की दीवारेँ आँगन मे पड़ती सूरज की किरणोँ को घेरती हैँ, सीमा बन जाती है। सीमा मे ऐसे निवास करता हुआ ईश्वर आत्मा है। क्या सत्य ही किरणोँ पर सीमा बनती है? सीमा आंगन की ही होती है। सूरज की किरणोँ पर दीवारेँ क्या बाधा बनेगी? दीवारेँ सूरज की किरणोँ को नही आंगन को बांधती है। लेकिन आंगन मे पड़ने वाली किरणोँ को भ्रम हो जाए कि मै भी बंध गया तो इसका नाम 'जीव' है। शरीर की सीमाओँ मे जो परमात्मा है उसका नाम आत्मा है और इस आत्मा को भ्रम हो जाए कि मै यही शरीर हूं तो इसका नाम जीव है। सीमा किरणोँ को बांध नही सकती लेकिन भ्रम हो सकता है।